रविवार, जुलाई 25, 2010

मेरा यार है कोई

उगते सूरज के उजाले इन आँखों में 
अंधेरों के आगोश में क्यों रहा करे कोई 

उनकी हंसी कि घुंघरुओं की खनक चारसू 
दिल में सरगम क्यों बाहर भटका करे कोई 

घूंघट की ओट से क्या देखा तुमने उस दिन 
बाखुशी हर रोज़ मरे जाता है कोई 

पास बैठो अभी जी भर के देखूं तुम्हें 
आये कज़ा तो बुत बन के रहा करे कोई 

फिक्र में बस तू ही तू अब तो पल छिन
क्या जानूं खुदा है तू बस मेरा यार है कोई

आ दिल में छुपा लूं तुझे इस तरहा
देखे न खुदा ही न उसका बंदा कोई  

इस तरह न देखो जो था वही है अब भी 'सुरेन'
जायेगा कहाँ दीवाना तेरा कितना ही खींचा करे कोई

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