बुधवार, जुलाई 28, 2010

शगल उनका

जब  वो  कोई  नहीं  तेरा    क्यूँ परेशान तू 
दिल तो धडका करे यूं ही नाहक हैरान है तू
 
ठहरे पानी में पत्थर फेंक के खिलखिलाना 
शगल  उनका  बस  खेल  का सामान है तू

 उनके  तमाशों  को   जाने है सारा ज़माना 
एक  तू  ही  रहा  गाफिल   नादान  है  तू

गुज़रता जाए है बेहिसाब यादों का कारवाँ  
उनका अहद चुप्पी  किसको सुनाने जाए तू 

मालूम था 'सुरेन' तुझे काँटों भरी है रहगुज़र 
किन से गिले शिकवे गर लहू लुहान है तू

रविवार, जुलाई 25, 2010

मेरा यार है कोई

उगते सूरज के उजाले इन आँखों में 
अंधेरों के आगोश में क्यों रहा करे कोई 

उनकी हंसी कि घुंघरुओं की खनक चारसू 
दिल में सरगम क्यों बाहर भटका करे कोई 

घूंघट की ओट से क्या देखा तुमने उस दिन 
बाखुशी हर रोज़ मरे जाता है कोई 

पास बैठो अभी जी भर के देखूं तुम्हें 
आये कज़ा तो बुत बन के रहा करे कोई 

फिक्र में बस तू ही तू अब तो पल छिन
क्या जानूं खुदा है तू बस मेरा यार है कोई

आ दिल में छुपा लूं तुझे इस तरहा
देखे न खुदा ही न उसका बंदा कोई  

इस तरह न देखो जो था वही है अब भी 'सुरेन'
जायेगा कहाँ दीवाना तेरा कितना ही खींचा करे कोई

शुक्रवार, जुलाई 09, 2010

स्त्री

हाँ , मैं 
एक स्त्री 
सहनशीलता की जीवंत मूर्ति
अचला , धरा की तरह .


जब चाहा खोदा 
जहाँ चाहा छील दिया 
दोहन करते रहे हो 
सतत , पर कब तक !


रक्त संबंधों का हवाला 
रिश्तों की सीमा 
तन की रचना का वास्ता 
क्यों , कब तक !

एक व्यक्ति हूँ मैं ,मानवी 
अभिव्यक्ति की प्यासी 
ताले न लगाओ 
व्यक्त होने दो मुझे 

सूखने न दो ,पछताओगे
बरसते इस सावन में 
होने दो मुझे तर बतर 
तुम्हीं पाओगे मुझ में ,कुछ सरस 

तुमने कहा मुझे , अबला
फिर क्यों हो भयातुर 
उड़ने दो मुझे , मुक्त 
आकाश मेरा भी है 

तुम पुरुष , कापुरुष 
मेरी ही रचना हो तुम 
शर्मिंदा , मैं एक स्त्री 
मां हूँ तुम्हारी , पर कब तक !

सह रही हूँ सब कुछ 
जाओगे भी कहाँ तुम !
मैं ही हूँ तुम्हारी सीमा ,
पर कब तक !