रविवार, जून 27, 2010

इतर : विवशता

उजले 
असीम आसमान में 
इकठ्ठा हैं कुछ 
ठिठुरे से,छितरे 
झीने सफ़ेद बादल 
हुक्के के गिर्द
चौपाल में बतियाते जमे हैं ,जैसे 
बरसों बाद मिले हैं 
(और)कुछ पल बाद 
बिछड़ जाना है .


नेपथ्य में ,
उसका ' सब कुछ ' हो गई है आँखें 
देखता सा बह रहा है 
निपट अकेला 
एक चाँद
कुछ ढूंढता और 
अनचीन्हो को छोड़ता 


बादल चले गए हैं 
मिल ,बतिया कर 
अपनी राह पर 
और चाँद ,उफ्फ !
स्तब्ध , मुंतज़िर उन बादलों का 
जिन्हें उसे पहचानना है