मेरी खिड़की के द्वार पर
पेड़ की एक टहनी
जब तब
उल्लास से मेरी आँखों में
झांकती है
हवा के झूले में पेंग बढा
कमरे में आता है
खुशबू का एक झोंका
और वहां होती है
खुशबू मात्र
कभी दूर से स्थिर
ताकती है मुझे
नहीं मालूम उस वक़्त क्यों
मैं भी होता हूँ उदास