आप से पूछता हूँ ,"मैं"
बताइये तो भला
मैं हूँ कौन !
अ, ब, स ? , नहीं सा'ब
दिसंबर में दो क्षिप्र
गर्म साँसों का टकराव ,संघनन
सितम्बर में
बर्फ का एक अदद 'पीस'
जून की गर्मी में
पल पल गलता पिघलता टुकड़ा
बहता पानी
और फिर भाप
बताइये तो भला
जून की भाप और
दिसम्बर की भाप के बीच
है कोई फर्क ?
जमे रहने और पिघलते जाने
के बीच फर्क
कि मैं हूँ कौन
बर्फ , पानी या भाप
नहीं मालूम ?
तो इस गड्ड मड्ड को डालिए
" खैर छोडिये " की झोली में
सुनिए,
मैं हूँ तो कुछ भी नहीं
"हूँ " तो बस
घड़ी की टिक टिक |
शनिवार, सितंबर 11, 2010
शनिवार, अगस्त 28, 2010
तू मायावी
हर रोज़ धीरे धीरे
रात जब युवा होती है
एक फिसलती सरसराहट
मुस्कुराती आँखें , तेरे बालों की महक
एक परिचित देह गंध
मेरा सत्व खींच लेती है
और
मैं पाता हूँ
एक फैलता खालीपन
जब जब दौड़ा हूँ तुम्हें पकड़ने
हांफता हूँ हर बार
और तुम निकल भागती हो
मायावी |
रात जब युवा होती है
एक फिसलती सरसराहट
मुस्कुराती आँखें , तेरे बालों की महक
एक परिचित देह गंध
मेरा सत्व खींच लेती है
और
मैं पाता हूँ
एक फैलता खालीपन
जब जब दौड़ा हूँ तुम्हें पकड़ने
हांफता हूँ हर बार
और तुम निकल भागती हो
मायावी |
बुधवार, जुलाई 28, 2010
शगल उनका
जब वो कोई नहीं तेरा क्यूँ परेशान तू
दिल तो धडका करे यूं ही नाहक हैरान है तू
ठहरे पानी में पत्थर फेंक के खिलखिलाना
शगल उनका बस खेल का सामान है तू
उनके तमाशों को जाने है सारा ज़माना
एक तू ही रहा गाफिल नादान है तू
गुज़रता जाए है बेहिसाब यादों का कारवाँ
उनका अहद चुप्पी किसको सुनाने जाए तू
मालूम था 'सुरेन' तुझे काँटों भरी है रहगुज़र
किन से गिले शिकवे गर लहू लुहान है तू
दिल तो धडका करे यूं ही नाहक हैरान है तू
ठहरे पानी में पत्थर फेंक के खिलखिलाना
शगल उनका बस खेल का सामान है तू
उनके तमाशों को जाने है सारा ज़माना
एक तू ही रहा गाफिल नादान है तू
गुज़रता जाए है बेहिसाब यादों का कारवाँ
उनका अहद चुप्पी किसको सुनाने जाए तू
मालूम था 'सुरेन' तुझे काँटों भरी है रहगुज़र
किन से गिले शिकवे गर लहू लुहान है तू
रविवार, जुलाई 25, 2010
मेरा यार है कोई
उगते सूरज के उजाले इन आँखों में
अंधेरों के आगोश में क्यों रहा करे कोई
उनकी हंसी कि घुंघरुओं की खनक चारसू
दिल में सरगम क्यों बाहर भटका करे कोई
घूंघट की ओट से क्या देखा तुमने उस दिन
बाखुशी हर रोज़ मरे जाता है कोई
पास बैठो अभी जी भर के देखूं तुम्हें
आये कज़ा तो बुत बन के रहा करे कोई
फिक्र में बस तू ही तू अब तो पल छिन
क्या जानूं खुदा है तू बस मेरा यार है कोई
आ दिल में छुपा लूं तुझे इस तरहा
देखे न खुदा ही न उसका बंदा कोई
इस तरह न देखो जो था वही है अब भी 'सुरेन'
जायेगा कहाँ दीवाना तेरा कितना ही खींचा करे कोई
अंधेरों के आगोश में क्यों रहा करे कोई
उनकी हंसी कि घुंघरुओं की खनक चारसू
दिल में सरगम क्यों बाहर भटका करे कोई
घूंघट की ओट से क्या देखा तुमने उस दिन
बाखुशी हर रोज़ मरे जाता है कोई
पास बैठो अभी जी भर के देखूं तुम्हें
आये कज़ा तो बुत बन के रहा करे कोई
फिक्र में बस तू ही तू अब तो पल छिन
क्या जानूं खुदा है तू बस मेरा यार है कोई
आ दिल में छुपा लूं तुझे इस तरहा
देखे न खुदा ही न उसका बंदा कोई
इस तरह न देखो जो था वही है अब भी 'सुरेन'
जायेगा कहाँ दीवाना तेरा कितना ही खींचा करे कोई
शुक्रवार, जुलाई 09, 2010
स्त्री
हाँ , मैं
एक स्त्री
सहनशीलता की जीवंत मूर्ति
अचला , धरा की तरह .
जब चाहा खोदा
जहाँ चाहा छील दिया
दोहन करते रहे हो
सतत , पर कब तक !
रक्त संबंधों का हवाला
रिश्तों की सीमा
तन की रचना का वास्ता
क्यों , कब तक !
एक व्यक्ति हूँ मैं ,मानवी
अभिव्यक्ति की प्यासी
ताले न लगाओ
व्यक्त होने दो मुझे
सूखने न दो ,पछताओगे
बरसते इस सावन में
होने दो मुझे तर बतर
तुम्हीं पाओगे मुझ में ,कुछ सरस
तुमने कहा मुझे , अबला
फिर क्यों हो भयातुर
उड़ने दो मुझे , मुक्त
आकाश मेरा भी है
तुम पुरुष , कापुरुष
मेरी ही रचना हो तुम
शर्मिंदा , मैं एक स्त्री
मां हूँ तुम्हारी , पर कब तक !
सह रही हूँ सब कुछ
जाओगे भी कहाँ तुम !
मैं ही हूँ तुम्हारी सीमा ,
पर कब तक !
रविवार, जून 27, 2010
इतर : विवशता
उजले
असीम आसमान में
इकठ्ठा हैं कुछ
ठिठुरे से,छितरे
झीने सफ़ेद बादल
हुक्के के गिर्द
चौपाल में बतियाते जमे हैं ,जैसे
बरसों बाद मिले हैं
(और)कुछ पल बाद
बिछड़ जाना है .
नेपथ्य में ,
उसका ' सब कुछ ' हो गई है आँखें
देखता सा बह रहा है
निपट अकेला
एक चाँद
कुछ ढूंढता और
अनचीन्हो को छोड़ता
बादल चले गए हैं
मिल ,बतिया कर
अपनी राह पर
और चाँद ,उफ्फ !
स्तब्ध , मुंतज़िर उन बादलों का
जिन्हें उसे पहचानना है
असीम आसमान में
इकठ्ठा हैं कुछ
ठिठुरे से,छितरे
झीने सफ़ेद बादल
हुक्के के गिर्द
चौपाल में बतियाते जमे हैं ,जैसे
बरसों बाद मिले हैं
(और)कुछ पल बाद
बिछड़ जाना है .
नेपथ्य में ,
उसका ' सब कुछ ' हो गई है आँखें
देखता सा बह रहा है
निपट अकेला
एक चाँद
कुछ ढूंढता और
अनचीन्हो को छोड़ता
बादल चले गए हैं
मिल ,बतिया कर
अपनी राह पर
और चाँद ,उफ्फ !
स्तब्ध , मुंतज़िर उन बादलों का
जिन्हें उसे पहचानना है
सोमवार, जून 14, 2010
कहीं 'वो' है तो नहीं !
उससे
बहुत डरता हूँ मैं
बचने के लिए मैंने
खड़ी की हैं दीवारें भी
लोग जिसे मेरा घर कहते हैं
पर आखिर
सोने का पिंज़रा भी जेल होता है
जैसे ही बाहर आऊं
मुड़ मुड़ के देखता हूँ
कहीं 'वो' है तो नहीं !
लोग पूछते हैं
किससे डरते हो !
उससे ? जो है ही नहीं
पर हाँ ,डर उसी का है
जो 'नहीं' है |
तलैया
जो भी आता है
कंकर फेंक ,धूर्त नज़रों से तौल
कंधे उचका कर चल देता है
निष्फल उर्मियाँ
आर्त कम्पन दुस्सह !
दीवारें ज़मीन की
सीमा की विवश घुटन
डाल दो एक साथ ,सारे पत्थर
चलो सूख ही जाए ,फिर
मन की तलैया |
कंकर फेंक ,धूर्त नज़रों से तौल
कंधे उचका कर चल देता है
निष्फल उर्मियाँ
आर्त कम्पन दुस्सह !
दीवारें ज़मीन की
सीमा की विवश घुटन
डाल दो एक साथ ,सारे पत्थर
चलो सूख ही जाए ,फिर
मन की तलैया |
मंगलवार, जून 08, 2010
सोमवार, जून 07, 2010
ताकती है मुझे
मेरी खिड़की के द्वार पर
पेड़ की एक टहनी
जब तब
उल्लास से मेरी आँखों में
झांकती है
हवा के झूले में पेंग बढा
कमरे में आता है
खुशबू का एक झोंका
और वहां होती है
खुशबू मात्र
कभी दूर से स्थिर
ताकती है मुझे
नहीं मालूम उस वक़्त क्यों
मैं भी होता हूँ उदास
रविवार, मई 23, 2010
सौंधी सी महक
बरसों से
तपती रेत पर
बरखा की पहली फुहार से उठी
सौंधी सी महक ,तुझे पाकर
बहुत डर गया हूँ मैं
बालू के महल भरभराते
ढहते टीलों के बियाबान समंदर में
तुम टिकोगी कैसे !
छेद गई है अंतस
तुम्हारी अल्पायु इयत्ता
रोक तो नहीं पाऊंगा तुम्हें
पर समझ गया हूँ
उपजीव्य तुम्हारा ,
मेरा जलना और उबलना
तपूंगा बरसों बरस फिर
बन गंध मिलूंगा तुममें
बरखा की पहली फुहार से उठी
सौंधी सी महक
तपती रेत पर
बरखा की पहली फुहार से उठी
सौंधी सी महक ,तुझे पाकर
बहुत डर गया हूँ मैं
बालू के महल भरभराते
ढहते टीलों के बियाबान समंदर में
तुम टिकोगी कैसे !
छेद गई है अंतस
तुम्हारी अल्पायु इयत्ता
रोक तो नहीं पाऊंगा तुम्हें
पर समझ गया हूँ
उपजीव्य तुम्हारा ,
मेरा जलना और उबलना
तपूंगा बरसों बरस फिर
बन गंध मिलूंगा तुममें
बरखा की पहली फुहार से उठी
सौंधी सी महक
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