न जाने कौन
आवाज़ देता रहा
कि 'हूँ' मैं,देख मुझे
सम्मोहित सा ढूँढा किया उसे
किताबों में,सुरों के सागर में
तितली के परों में और
चिडिया की चहक में
हवाओं के साथ
पेड़ों के झूलने में
पत्तों से छन कर आती तिलस्मी
झिलमिलाहट में
लगता रहा कि
इन्हीं में है 'वो 'कहीं
पर लुकाछिपी और बाजीगरी तो धर्म उसका
कस्तूरीमृग की तरह
मैं ही था कि खोजता रहा उसे
फलसफों और जंगलों में
वो तो था सदा यहीं
दिल में मिरे