उगते सूरज के उजाले इन आँखों में
अंधेरों के आगोश में क्यों रहा करे कोई
उनकी हंसी कि घुंघरुओं की खनक चारसू
दिल में सरगम क्यों बाहर भटका करे कोई
घूंघट की ओट से क्या देखा तुमने उस दिन
बाखुशी हर रोज़ मरे जाता है कोई
पास बैठो अभी जी भर के देखूं तुम्हें
आये कज़ा तो बुत बन के रहा करे कोई
फिक्र में बस तू ही तू अब तो पल छिन
क्या जानूं खुदा है तू बस मेरा यार है कोई
आ दिल में छुपा लूं तुझे इस तरहा
देखे न खुदा ही न उसका बंदा कोई
इस तरह न देखो जो था वही है अब भी 'सुरेन'
जायेगा कहाँ दीवाना तेरा कितना ही खींचा करे कोई