सोमवार, जनवरी 31, 2011

नियति

बिजली के खंभे पर 
निर्वासित चिड़िया अवाक् 
स्तब्ध  निराश आँखें 
ताकती हैं नीचे 
सड़क पर तमाशा 

सड़क पर दौड़ते हैं 
हत्यारे ट्रक ,तिपहिया  
और कारों के काफिले 
गले में अटकीं शून्य ध्वनियाँ 

रंगरेजों की यह बस्ती 
आँखों में लाल आग ,रंग नहीं 
जुगनू भी कहाँ शहर के अंधेरों में 
भट्टियाँ और ईंधन 

कंप्यूटर देखते हैं 
सुख के अंबार , सपने 
बमों के धमाके 
पर नहीं टूटती कुम्भकर्णी नींद 

शायद 
मकड़ी की नियति तुम्हारी है.