सोमवार, जून 14, 2010

तलैया

जो भी आता है 
कंकर फेंक ,धूर्त नज़रों से तौल 
कंधे उचका कर चल देता है 
निष्फल उर्मियाँ 
आर्त कम्पन दुस्सह !


दीवारें ज़मीन की
सीमा की विवश घुटन 
डाल दो एक साथ ,सारे पत्थर 
चलो सूख ही जाए ,फिर 
मन की तलैया |

1 टिप्पणी:

  1. दीवारें ज़मीन की
    सीमा की विवश घुटन
    दाल दो एक साथ ,सारे पत्थर
    चलो सूख ही जाए ,फिर
    मन की तलैया ....

    इस तरह सूखेगी मन की तलैया ...गज़ब ...!!

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