सोमवार, जून 07, 2010

ताकती है मुझे

मेरी खिड़की के द्वार पर 
पेड़ की एक टहनी 
जब तब 
उल्लास से मेरी आँखों में 
झांकती है 

हवा के झूले में पेंग बढा
कमरे में आता है 
खुशबू का एक झोंका
और वहां होती है 
खुशबू मात्र 

कभी दूर से स्थिर 
ताकती है मुझे 
नहीं मालूम उस वक़्त क्यों 
मैं भी होता हूँ उदास
 

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा और सार्थक प्रयास है सुरेंद्र जी। आपको बधाई और शुभकामनाएं।
    http://udbhavna.blogspot.com/

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