बूढे पेड़ों की शाखों पर
अब भी हलचल
कुछ चिडियों के डेरे हैं
चीर फ़कीर के
सदियों तपे धूप में
फटे ताने हैं
खोखल कहो भले ही
जीवन अमृत भरे कमंडल
पिए गिलहरी
अपनी जात पर पहरे हैं
शब्द बहुत हैं भाषा उन्नत
लिखा है युमने सोच सोच
आग्नेय अक्षर
प्रकाश चकाचौंध ,पर
अपने अपने दडबे हैं
काश मिले कोई गंध तुम्हें
हवा चलेगी ,तरसोगे
काश मिले कोई आँख तुम्हें
देख सको तुम अपनी किस्मत
लपट आग की दहक रही
और रक्त के घेरे हैं
आओ उतरें जंगल में
यहाँ तो घोर अँधेरे हैं
This one is really very nice, keep it up... :)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना...अद्भुत अभिव्यक्ति...बधाई..
जवाब देंहटाएंनीरज