शनिवार, अगस्त 28, 2010

तू मायावी

हर रोज़ धीरे धीरे 
रात जब युवा होती है
एक फिसलती सरसराहट 
मुस्कुराती आँखें , तेरे बालों की महक 
एक परिचित देह गंध 
मेरा सत्व खींच लेती है 
और 
मैं पाता हूँ 
एक फैलता खालीपन 
जब जब दौड़ा हूँ तुम्हें पकड़ने 
हांफता हूँ हर बार 
और तुम निकल भागती हो 
मायावी |

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