हर रोज़ धीरे धीरे
रात जब युवा होती है
एक फिसलती सरसराहट
मुस्कुराती आँखें , तेरे बालों की महक
एक परिचित देह गंध
मेरा सत्व खींच लेती है
और
मैं पाता हूँ
एक फैलता खालीपन
जब जब दौड़ा हूँ तुम्हें पकड़ने
हांफता हूँ हर बार
और तुम निकल भागती हो
मायावी |
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