आओ
दिनों पर लगाएं ठप्पे
और मनाएँ उत्सव
बीवी की चूड़ी बिके
तो छल्लों का क्या
शराब पियें और नाचें ,क्योंकि
कल के लिए नहीं है
अपने पास कोई और ठप्पा
कल से फिर रेतेंगे
एक दूसरे के गले
आओ आज तो गले मिल लें ,
सहला लें और नाप लें
नाली में बुझे पटाखे बीन लें
कोशिश करें कि धमाके हों
न हो तो न सही
आज है उत्सव
आओ मना लें
;)
जवाब देंहटाएंकाफ़ी गहरी कविताएं हैं आपकी। प्रभावित करने वाला एक नया अंदाज़ तारी है। आपको कविताएं पेश करते रहनी चाहिएं।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।