बूढ़े पेड़ों की शाखों पर
अब भी हलचल
कुछ चिड़ियों के डेरे हैं
सदियों तपे धूप में
चीर फकीर के
फटे तने हैं
खोखल कहो भले ही
जीवन-अमृत भरे कमंडल
पिए गिलहरी,
अपनी जात पर पहरे हैं
शब्द बहुत हैं,भाषा उन्नत
लिखे हैं तुमने सोच सोच
बारूद-आखर,
पर अपने अपने दडबे हैं
काश!मिले कोई गंध तुम्हें
हवा चलेगी,तरसोगे
काश!मिले कुछ नज़र तुम्हें
देख सको तुम अपनी किस्मत
लपट आग की दहक रही
और रक्त के घेरे हैं
आओ उतरें जंगल में
यहाँ तो घोर अँधेरे हैं